English: Click here to read this article in English. जब फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट क्या है? हम ट्रेडिंग के लिए एक निश्चित स्टॉक को देखते हैं, .
Gold की कीमतों में अचानक उछाल की क्या है वजह?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सोने को लेकर आउटलुक पॉजिटिव दिख रहा है। लेकिन, डॉलर इंडेक्स में मजबूती के बाद सोने में मुनाफावसूली दिख सकती है।
बीते हफ्ते सोने (Gold) में अच्छी तेजी दिखी। इसके भाव एक महीना की ऊंचाई पर पहुंच गए। कमोडिटी एक्सचेंज MCX पर गोल्ड का अक्टूबर फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट (October Futures Contract) 51,864 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। अंतरराष्ट्रीय बाजार में हाजिर में सोने का भाव 1,800 डॉलर का स्तर छूने के बाद आखिर में 1,774 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ।
सोने में तेजी की वजह बदलते अंतरराष्ट्रीय माहौल को फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट क्या है? बताया जा रहा है। अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों के मंदी में जाने की आशंका जताई जा रही है। उधर, ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन में तनानती लगातार बढ़ रही है। जब कभी दुनिया में राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता बढ़ती है, सोने की डिमांड बढ़ जाती है। इस वजह से इसकी कीमतें चढ़ती हैं। इसकी वजह यह है कि सोने को निवेश का सबसे सुरक्षित माध्यम माना जाता है।
फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस क्या हैं? निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें
हर कोई अपने निवेश से मुनाफा कमाना चाहता है. मार्केट (बाजार) में निवेश के कई विकल्प फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट क्या है? मौजूद हैं. आज हम वित्तीय साधनों (फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट) के बारे में बात करेंगे, जिन्हें फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के तौर पर जाना जाता है. फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के जरिए न केवल शेयरों में, बल्कि सोने, चांदी, एग्रीकल्चर कमोडिटी और कच्चे तेल (क्रड ऑयल) सहित फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट क्या है? कई अन्य डेरिवेटिव सेगमेंट में भी कारोबार करके पैसा कमाया जा सकता है. फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस को समझने से पहले उस मार्केट को समझना जरूरी है, जिसमें ये प्रोडक्ट्स खरीदे और बेचे जाते हैं.
इन दोनों प्रोडक्ट का डेरिवेटिव मार्केट में कारोबार होता है. ऐसे कई प्लेटफॉर्म हैं, जहां से ये ट्रेड किए जा सकते हैं. अगर आप भी इसमें शुरुआत करना चाहते हैं, फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट क्या है? तो 5paisa.com (https://bit.ly/3RreGqO) वह प्लेटफॉर्म है जो डेरिवेटिव ट्रेडिंग में आपका सफर शुरू करने में मदद कर सकता है.
डेरिवेटिव्स क्या होते हैं?
डेरिवेटिव वित्तीय साधन (फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट) हैं, जो एक अंतर्निहित परिसंपत्ति (अंडरलाइंग एसेट) या बेंचमार्क से अपनी कीमत (वैल्यू) हासिल करते हैं. उदाहरण के लिए, स्टॉक, बॉन्ड, करेंसी, कमोडिटी और मार्केट इंडेक्स डेरिवेटिव में इस्तेमाल किए जाने वाले कॉमन एसेट हैं. अंतर्निहित परिसंपत्ति (अंडरलाइंग एसेट) की कीमत बाजार की स्थितियों के मुताबिक बदलती रहती है. मुख्य रूप से चार तरह के डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट हैं – फ्यूचर (वायदा), फॉरवर्ड, ऑप्शन और स्वैप.
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के जरिए खरीदार (या विक्रेता) भविष्य में एक पूर्व निर्धारित तिथि पर एक पूर्व निर्धारित मूल्य पर संपत्ति खरीद या बेच सकता है. वायदा कारोबार (फ्यूचर ट्रेडिंग) करने वाले दोनों पक्ष अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) को पूरा करने के लिए बाध्य होते हैं. इन अनुबंधों का स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार होता है. वायदा अनुबंध की कीमत अनुबंध खत्म होने तक मार्केट के हिसाब से बदलती रहती है.
जोखिम (रिस्क)
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट होल्डर भविष्य की तारीख में खरीदने के लिए बाध्य है, भले ही उनके लिए ये घाटे का सौदा हो। मान लीजिए कि एसेट का बाजार मूल्य कॉन्ट्रैक्ट फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट क्या है? में लिखा मूल्य से नीचे आता है। खरीदार को फिर भी इसे पहले से एग्रीड कीमत पर खरीदना होगा और नुकसान उठाना होगा।
एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार को यहां एक फायदा है। यदि एसेट वैल्यू सहमत (अग्रीड) मूल्य से कम हो जाता है, तो खरीदार इसे खरीदने से मना कर सकता है। यह खरीदार के नुकसान को सीमित या कम करता है।
दूसरे शब्दों में, एक फ्यूचरस कॉन्ट्रैक्ट अनलिमिटेड लाभ या हानि ला सकता है। इस बीच, एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट अनलिमिटेड लाभ ला सकता है, लेकिन यह संभावित (पोटेंशियल) नुकसान को कम करता है।
एडवांस पेमेंट:
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में प्रवेश करते समय कोई एडवांस पेमेंट नहीं देना होता है। लेकिन खरीदार असेस्ट्स के लिए सहमत कीमत एग्रीड प्राइस देने के लिए बाध्य है।
एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार को प्रीमियम अमाउंट खरीदना पड़ता है। इस प्रीमियम अमाउंट का पेमेंट ऑप्शंस खरीदार को भविष्य फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट क्या है? की तारीख में संपत्ति को कम आकर्षक होने पर नहीं खरीदने का विशेषाधिकार देता है। यदि ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट होल्डर संपत्ति को नहीं खरीदना चाहता है, तो उसे, पे किये गए प्रीमियम अमाउंट का नुकसान होता है।
दोनों ही मामलों में, आपको कुछ कमीशन पे करना पड़ सकता है।
कॉन्ट्रैक्ट एक्सीक्यूशन:
एक फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट, कॉन्ट्रैक्ट में दिए गए अग्रीड डेट पर एक्सेक्यूट किया जाता है। इस डेट पर, खरीदार अंडरलाइंग एसेट खरीदता है।
हालांकि, एक ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में खरीदार एक्सपायरी डेट से पहले कॉन्ट्रैक्ट एक्सेक्यूटे कर सकता है। और जब भी उसे लगता है कि परिस्थितियां सही हैं, तो वह संपत्ति खरीद सकता हैं।
क्या है फ्यूचर कैलेंडर स्प्रेड? आम निवेशक कैसे करता फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट क्या है? है सौदे, जानिए सबकुछ
फ्यूचर्स को आम बोलचाल की भाषा में फ्यूचर्स को वायदा सौदा भी कहा जाता है. यानी वह सौदा, जिसमें शेष भुगतान और डिलीवरी किसी निश्चित तारीख को होती है. कुछ चुनिंदा शेयरों में ही वायदा कारोबार होता है.
हर महीने के अंतिम गुरुवार को NSE पर वायदा सौदों का सेटलमेंट होता है.फ्यूचर्स में किसी शेयर की निश्चित संख्या लॉट साइज़ कहलाता है.शेयरों के लिए लॉट साइज़ भी अलग-अलग होता है. वायदा बाज़ार में ख़रीद-फरोख्त के लिए मार्जिन मनी देनी होती है.
फ्यूचर्स के मुकाबले ऑप्शन्स ज़्यादा सुरक्षित है. ऑप्शन्स में नुकसान सीमित, फ्यूचर्स में घाटे की कोई सीमा नहीं
ऑप्शन्स में एक तरफ़ ख़रीदारी होता है तो दूसरी तरफ 'ऑप्शन राइटर' होता है.इंडेक्स या शेयर में तेज़ी का रुख़ रखने वाले निवेशक कॉल ऑप्शन्स ख़रीदते हैं. इंडेक्स या शेयर में मंदी का रुख़ रखने वाले निवेशक पुट ऑप्शन्स ख़रीदते हैं. स्ट्राइक रेट के हिसाब से कॉल, पुट के अलग-अलग भाव होते है. स्ट्राइक रेट यानी वो भाव जिस पर आप शेयर या इंडेक्स को छोटी अवधि में पहुंचता हुआ देखते हैं. अब बात करते हैं कमोडिटी के फ्यूचर कैलेंडर स्प्रेड की.
डेरिवेटिव मार्केट- अर्थ, प्रकार, हिस्सेदार, भिन्नता
English: Click here to read this article in English. डेरिवेटिव (व्युत्पन्न) मार्केट को भारत में वर्ष 2000 में पेश किया .
Derivative Market – Meaning, Types, Participants, Differences
Just like shares, derivatives are also traded in stock exchanges.Derivatives are a type of security, whose value is derived from .
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