विद्यार्थियों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं को जानने के लिए
क्रियात्मक अनुसंधान अर्थ, प्रकार, परिभाषाएं, उद्देश्य,चरण और इतिहास Action Research Meaning, Types, Definitions, Objectives, Stages and History
क्रियात्मक अनुसंधान एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मौलिक समस्याओं का अध्ययन करके नवीन तथ्यों की खोज करना, जीवन सत्य की स्थापना करना तथा नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना है। अनुसंधान एक सोद्देश्य प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मानव ज्ञान में वृद्धि की जाती है।
इसमें अनुसंधानकर्ता विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक स्वयं ही होते हैं। इस अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य विद्यालय की कार्यप्रणाली में संशोधन कर सुधार लाना है। क्रियात्मक अनुसंधान में संपादित करने में शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। अनुसंधान के अंतर्गत तत्कालीन प्रयोग पर अधिक बल देते हैं।
क्रियात्मक अनुसंधान के उत्पादक और उपभोक्ता दोनों ही स्वयं शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक होते हैं। वीवी कामत ने अपने एक लेख में (कैन ए टीचर डू रिसर्च टीचिंग, 1975) भारत में अनुसंधान के कुछ क्षेत्रों का उल्लेख किया, जो इस प्रकार है। भिन्न-भिन्न भाषाओं में विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों का शब्द भंडार, भारत में पब्लिक स्कूल, भाषा सीखने में भूलें, विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों की ऐच्छिक क्रियाएं। विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों की लंबाई, भार तथा अन्य शारीरिक लक्षण, भूगोल एवं इतिहास की अध्यापन पद्धतियां शामिल हैं।
क्रियात्मक अनुसंधान के प्रकार
अर्थ - विद्यालय से संबंधित व्यक्तियों द्वारा अपनी और विद्यालय की समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन करके अपनी क्रियाओं और विद्यालय की गतिविधियों में सुधार लाना।
उदाहरणार्थ : क्रियात्मक अनुसंधान से निरीक्षक अपने प्रशासन में प्रबन्धक विद्यालय की व्यवस्था में प्रधानाचार्य अपने विद्यालय के संचालन में और शिक्षक अपने शिक्षण कार्य में सुधार ला सकते हैं।
1. मेक ग्रेथटे मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है के अनुसार, "क्रियात्मक अनुसंधान व्यवस्थित खोज की क्रिया है जिसका उद्देश्य व्यक्ति समूह की क्रियाओं में रचनात्मक सुधार तथा विकास लाना है।"
2.स्टीफन एम. कोरे के अनुसार, “शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान, कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान
3. Research education के अनुसार, "क्रियात्मक अनुसंधान वह अनुसंधान है, जो एक व्यक्ति अपने उद्देश्यों को अधिक उत्तम प्रकार से प्राप्त करने के लिये करता है।"
क्रियात्मक अनुसंधान का इतिहास और प्रयोग
क्रियात्मक अनुसंधान वर्तमान जनतांत्रिक युग की देन है। इसे प्रतिपादित करने का श्रेय अमरीका को है। क्रियात्मक अनुसंधान के द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरीका में कोलियार द्वारा किया गया था।
इसके बाद क्रियात्मक अनुसंधान शब्द का मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है प्रयोग सर्वप्रथम लेविन ने 1964 में मानव-संबंधों को बेहतर करने के लिए सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान के प्रयोग की सिफारिश की।
अमेरीका के राइटस्टोन ने 'पाठ्यक्रम ब्यूरो' के कार्यों के विवरण में क्रियात्मक अनुसंधान शब्द का प्रयोग किया। इसी प्रकार टूबा, ब्रैडी और रॉबिन्सन ने समस्या समाधान के रूप में क्रियात्मक अनुसंधान को प्रमुखता प्रदान की।
शिक्षा के मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान को स्थाई रूप से प्रतिष्ठित करने का श्रेय अमेरीका के कोलंबिया विश्वविद्यालय स्टीफेन एम. कोरे को है जिन्होनें 1953 में यह कदम उठाया। 1953 में कोरे की पुस्तक विद्यालय की कार्यपद्धति में सुधार करने के लिए क्रियात्मक : अनुसंधान' का प्रकाशन हुआ जिसके बाद क्रियात्मक अनुसंधान को लोकप्रियता तेजी के साथ बढ़ी।
1. पूर्व-क्रिया अवस्था (Pre-active Stage)
शिक्षण से संबंधित अनेक क्रियाकलाप ऐसे होते हैं जिन्हें कक्षा-शिक्षण के पूर्व शिक्षक को करना पड़ता है। इन क्रियाकलापों में शिक्षक अपनी योग्यता और अनुभव के अनुसार कक्षा शिक्षण के उद्देश्य निर्धारित करता है। उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किस पाठ्य-वस्तु को किस क्रम से प्रस्तुत किया जाए, इसकी योजना बनाता है। इस योजना के अनुसार शिक्षण की युक्तियों का चयन करते हुए शिक्षण की विशिष्ट व्यूहरचना करता है। ये सभी क्रियाएँ पाठ को सफल बनाने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इस सोपान पर ही शिक्षक के अन्य सोपानों की सफलता आधारित है।
शिक्षक पाठ की तैयारी स्वयं करता है तथा विषय-विशेषज्ञ व्यक्ति की सहायता ली जा सकती है। पाठ्य-पुस्तक एवं सहायक/सन्दर्भ पाठ तैयार हेतु आधार बन सकती हैं। इस सोपान में शिक्षण के लिए योजना तैयार करना महत्त्वपूर्ण कार्य है। यह लिखित या मौखिक (मानसिक रूप से अध्ययन हेतु तैयार होना) रूप से हो सकती है। इसमें शिक्षक कक्षा प्रवेश से पूर्व वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए तैयारी करता है। शिक्षक सामग्री एवं विधि से सम्बन्धित निर्णय लेता है।
(i) शिक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण-
अध्यापक शिक्षण के सोपानों में अध्यापन से पहले उद्देश्यों को निश्चित करता है। उद्देश्यों को निश्चित करने के बाद उनको व्यवहार परिवर्तन के रूप में भी उनको स्पष्ट करता है। इसमें अध्यापक यह भी निश्चित करता है कि पूर्व व्यवहार के रूप में और अन्तिम व्यवहार के रूप में क्या उद्देश्य होंगे?
शिक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण करने के बाद शिक्षक पाठ्य-वस्तु का चयन करेगा। शिक्षक इसमें यह देखेगा कि यह पाठ्य-वस्तु इस पाठ्यक्रम के लिए क्यों आवश्यक है और विद्यार्थियों के लिए किस स्तर की अभिप्रेरणा प्रभावशाली होगी और उनके मूल्यांकन के लिए किन-किन विधियों का प्रयोग किया जाए? आदि।
(iii) पाठ्य-वस्तु के भागों की क्रमबद्धता
शिक्षक द्वारा उद्देश्यों व पाठ्य-वस्तु का चयन करने के बाद पाठ्य-वस्तु के विभिन्न भागों को क्रमबद्ध रूप से रखा जाना बहुत आवश्यक है। पाठ्य-वस्तु की यह क्रमबद्धता मनोवैज्ञानिक मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है ढंग से रखी जानी चाहिए जिससे कि बालकअच्छी प्रकार से सीख सके।
रचना के संबंध में निर्णय इस क्रिया में शिक्षक छात्रों की आयु, परि क्वता, योग्यताओं आदि के आधार पर ज्ञान प्रदान करने के लिए इस बात पर चिन्तन करता है क वह शिक्षण की कौन-सी व्यूह रचनाओं का प्रयोग करे ताकि छात्र सरलता से ज्ञान प्राप्त कर सकें। सभी प्रशिक्षण संस्थान छात्राध्यापकों को विभिन्न व्यूह रचनाओं के विषय में इसीलिए ज्ञान प्रदान करते हैं जिससे कि वे कक्षा में सही व्यूह रचनाओं आदि का चयन कर सके और शिक्षण कार्य को सुचारु रूप से कर सकें।
(v)शिक्षण युक्तियों का चुनाव-
शिक्षक को कक्षा में जाने से पहले ही इस बात का निर्णय करना चाहिए कि पाठ्य-वस्तु के किन-किन शिक्षण बिन्दुओं को स्पष्ट करने के लिए शिक्षण के समय कौन-सी शिक्षण युक्तियाँ तथा प्रविधियों, उदाहरण तथा सहायक सामग्री का प्रयोग करेगा। कक्षा में कब प्रश्न करेगा, व्याख्यान देगा और किस समय कौन-सी श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग करेगा। शिक्षक को पहले से योजना बना लेनी चाहिए कि वह शिक्षण का मूल्यांकन कैसे और किन प्रविधियों के माध्यम से मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है करेगा।
इस अवस्था या सोपान के अन्तर्गत शिक्षण की वे सभी क्रियाएँ आती हैं जो शिक्षक कक्षा में प्रवेश करने के पश्चात् करता है। पाठ के प्रस्तुतीकरण से संबंधित सभी क्रियाएँ इसमें सम्मिलित हैं। शिक्षक को कक्षा में विभिन्न प्रकार के कौशलों का प्रयोग करना पड़ता है। इसमें से कक्षा व्यवस्था कौशल व सम्प्रेषण कौशल बहुत महत्त्वपूर्ण है। शिक्षक का शिक्षण कार्य में कक्षा व्यवस्था का कौशल बहुत महत्त्वपूर्ण है। विद्यालय में कक्षा में जाने पर सबसे पहले कक्षा व्यवस्था का कौशल काम में लेना होता है। अच्छी शिक्षण कक्षा मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है व्यवस्था के कौशल पर बहुत कुछ निर्भर करता है। अधिगम के लिए उपयुक्त वातावरण का मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है निर्माण इस कौशल के द्वारा ही होता है। इसलिए कक्षा में विद्यार्थियों के बैठने की समुचित व्यवस्था, कक्षा के आवश्यक साधन व व्यवस्थाएँ (फर्नीचर, दरी, श्यामपट्ट, चॉक, डस्टर) आदि को ध्यान में रखना होगा। कक्षा में विद्यार्थियों के बैठने के लिए लम्बाई के अनुसार, दृष्टि-दोष, श्रव्य-दोष आदि को ध्यान में रखकर व्यवस्था की जानी चाहिए। कक्षा की शैक्षिक क्रियाओं, भौतिक व सामाजिक क्रियाओं के अनुसार व्यवस्था होनी चाहिए। तैयारी की अवस्था के बाद दूसरी अवस्था इस प्रकार से शिक्षण की वास्तविक अवस्था में जाना है।
आकलन की आवश्यकता तथा महत्व (Need and significance of Assessment)
आकलन की आवश्यकता विद्यालय में छात्रों की अधिगम क्षमता. रुचि, व्यक्तित्व अभियोग्यता आदि के बारे में जानकारी करने तथा उनके अनुरूप पाठ्यक्रम में निर्माण संरचना आदि के लिए आकलन की आवश्यकता पड़ती है आकलन की आवश्यकता निम्न बिंदुओं को समझने के लिए पड़ती है
1.विद्यार्थी के संदर्भ में (With reference to the student)
छात्र क्या जानता है?
छात्रों की रुचियाँ कौन-कौन सी हैं?
छात्र की विशिष्ट आवश्यकताएं क्या हैं?
छात्रों की योग्यता के अनुरूप पाठ्यक्रम चयन करने में
कक्षा में छात्रों का उचित स्थान वर्गीकरण करने में
2.अध्यापक हेतु (For teacher)
छात्रों के कौशल योग्यता तथा अधिगम क्षमता को पहचानने के लिए
शिक्षण विधि का चयन करने के लिए
नई कक्षाओं की व्यवस्थापन के लिए
आकलन का महत्व (Importance of assessment)-
आकलन द्वारा विद्यार्थियों की अधिगम क्षमता को बढ़ाने मूल्यांकन के पहले सुधार हेतु पृष्ठ पोषण लिया जाता है यह मूल्यांकन का ही एक छोटा रूप है इसके शिक्षक महत्त्व निम्नानुसार है
1.अधिगम के लिए गुणवत्तापूर्ण वातावरण निर्मित करने के लिए
2.शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिए
3.शिक्षक एवं छात्रों के स्व मूल्यांकन के लिए
4.छात्रों की प्रगति का पता लगाने के लिए निम्न बिंदुओं के आकलन किया जाता है
5.छात्रों ने क्या सीखा?
6.क्या छात्र दैनिक जीवन में नए ज्ञान और कौशल का उपयोग कर रहे हैं?
7.क्या छात्र ने ज्ञान के बारे में बता सकते हैं?
8.वैधानिक पृष्ठ पोषण प्रदान करने के लिए
9.छात्रों के ज्ञान के संदर्भ में
10.छात्रों के प्रदर्शन के संदर्भ में
11.छात्रों की आवश्यकता के संदर्भ में
मूल्य क्रिया विश्लेषण करने का क्या अर्थ है
Year: Jul, 2021
Volume: 18 / Issue: 4
Pages: 92 - 94 (3)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/I/a/304874
Published On: Jul, 2021
गृह प्रबंध में गृहिणी की भूमिका: एक विश्लेषण | Original Article
Shikha Choudhary*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research
अधिकतम अंक: 5
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